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समतल दर्पण - उत्तल व अवतल दर्पण तथा इसके उपयोग
समतल दर्पण- प्रतिबिम्ब सीधा, आभासी, वस्तु के बराबर, पार्श्व परावर्तित व दर्पण के पीछे बनता है। इसमें प्रतिबिम्ब दर्पण के पीछे उतनी ही दूरी पर बनता है जितनी दूरी पर वस्तु (बिम्ब) दर्पण के सामने स्थित हो।समतल दर्पण का आवर्धन गुणांक (m) = 1 होता है।
पार्श्व परावर्तन- समतल दर्पण के समान्तर रखी किसी आकृति का दायां भाग बायां और बायां भाग दायां दिखाई देता है इस घटना को पार्श्व परावर्तन कहते है।
q | p
रोगी वाहनों पर AMBULANCE शब्द पार्श्व परावर्तन के कारण उल्टा लिखा जाता है। ताकि वाहन चालक को दर्पण में सीधा प्रतिबिम्ब दिखाई दे सके।
नोटः- समतल दर्पण द्वारा व्यक्ति के स्वयं का पूर्ण प्रतिबिम्ब देखने के लिए समतल दर्पण की लम्बाई उस व्यक्ति की लम्बाई आधी होनी चाहिए।
यदि आपतित किरण को नियत रखते हुए दर्पण को θ° कोण से घूमा दे तो परावर्तित किरण 2θ कोण से घूम जाती है। यदि दो समान्तर समतल दर्पणों (θ=0°) के मध्य कोई व्यक्ति खड़ा है तब बनने वाले प्रतिबिम्बों की संख्या अनन्त होती है। यदि एक व्यक्ति समतल दर्पण के सामने V चाल से चलता है तो उसका प्रतिबिम्ब 2V चाल से आता हुआ प्रतीत होता है। दर्पण के पीछे चांदी की परत या पारे की परत का लेपन करने के पश्चात् व परावर्तक सतह की भांति कार्य करती है।
क्र.स. | दर्पणों के मध्य कोण | प्रतिबिम्बों की संख्या |
---|---|---|
1. | 90° | 3 |
2. | 60° | 5 |
3. | 45° | 7 |
4. | 30° | 11 |
5. | 0° | अन्नत |
प्रश्नः एक समतल दर्पण में 2 मीटर ऊँचाई की वस्तु का पूर्ण प्रतिबिम्ब देखने के लिए दर्पण की न्यूनतम ऊँचाई कितनी होनी चाहिए?
(a) 4 मी. (b) 1मी.
(c) 2 मी. (d) 0.5मी.
Ans - (b)
Hint. पूर्ण प्रतिबिम्ब देखने हेतु दर्पण की ऊँचाई वस्तु की ऊँचाई का आधा होना आवश्यक है।
समतल दर्पण के मध्य दो वस्तु θ कोण पर स्थित हो, तो बनने वाले प्रतिबिम्बों की संख्या
(1) n = 360°/θ
जब n का मान एक विषम संख्या प्राप्त हो।
θ= दर्पण के मध्य कोण
(2) n = 360°/θ-1
यदि का मान एक सम संख्या है तब बनने वाले प्रतिबिम्बों की संख्या n-1 होगी। क्योंकि केलिडोस्कोप प्रभाव के कारण दो प्रतिबिम्ब में अतिव्यापन होता है।
उदा:-1. जब θ = 120° हो, तो प्रतिबिम्बों की संख्या?
n = 360/120 = 3 = विषम संख्या कोई परिवर्तन नहीं
उदा:-2. जब θ = 90° हो, तो प्रतिबिम्बों की संख्या?
n = 360/90= 4-1=3 (सम संख्या)
NOTE-यदि 360° में कोण के मान का भाग देने पर भागफल भिन्न प्राप्त हो, तो प्रतिबम्बों की संख्या (n) के प्राप्त मान का अगला पूर्णांक लेते है।
उदा:-एक वस्तु 50° के कोण पर रखे दो समतल दर्पणों के मध्य रखी हो, तो प्रतिबिम्बों की संख्या ज्ञात कीजिए:-
Ans. n = 360/θ-1
360/50 = 6.2 (अगला पूर्णांक 7 अतः प्रतिबिम्बों की संख्या 7 होगी।)
समतल दर्पण के उपयोग-
(1) बहुरूपदर्शी/केलिडोस्कोप में ( θ = 60°) - बुनकरों द्वारा विभिन्न प्रकार के रंगीन डिजाइन देखने के लिए केलिडोस्कोप का उपयोग किया जाता है।
(2) परिदर्शी/पेरिस्कोप ( θ = 45°) -युद्ध के समय बंकर में छिपे सैनिक जमीन पर चल रहे दुश्मनों की गतिविधियों को देखने के लिए इस उपकरण का उपयोग करते है। पनडुब्बी जहाज में इसका उपयोग किया जाता है।
(3) घरों में प्रयुक्त दर्पण चेहरा देखने हेतु।
गोलीय दर्पण:-ऐसे दर्पण जिनका परावर्तक पृष्ठ गोलीय है गोलीय दर्पण कहलाते है।
गोलीय दर्पण दो प्रकार के होते है।
1. अवतल दर्पण/अभिसारी दर्पण (Concave mirror)
2. उत्तल दर्पण/अपसारी दर्पण (Convax mirror)
1. अवतल दर्पण (Concave mirror):-वह गोलीय दर्पण जिसका अन्दर की ओर अर्थात् गोले के केन्द्र की ओर वक्रित पृष्ठ परावर्तक के रूप में कार्य करता है, अवतल दर्पण कहलाते है। अवतल दर्पण से बनने वाला प्रतिबिम्ब उल्टा होता है।
सूर्य के प्रकाश को अवतल दर्पण अभिसारित (अभिकेन्द्रित) कर देने से कागज जलने लगता है।
प्रतिबिम्ब वस्तु से छोटा होता है अर्थात् अवतल दर्पण में वास्तविक प्रतिबिम्ब बनता है। जिसे पर्दे पर प्राप्त किया जा सकता है।
नोट-अवतल दर्पण की विशेष स्थिति जब वस्तु को ध्रुव (Pole) और फोकस के मध्य रखा जाता है केवल तभी प्रतिबिम्ब सीधा व आभासी बनता है।
2. उत्तल दर्पण (अपसारी दर्पण):- ऐसे गोलीय पृष्ठ जिनका बाहरी भाग दर्पण के परावर्तक पृष्ठ की तरह उपयोग में लिया जाता है। उन्हें उत्तल दर्पण कहते है। उत्तल दर्पण में बनने वाला प्रतिबिम्ब सदैव आभासी, सीधा एवं छोटा बनता है। उदा:-घण्टी का परावर्तक पृष्ठ उत्तल है।
अवतल दर्पण में बिम्ब की विभिन्न स्थितियों में प्रतिबिम्ब का विवरण -
HINT- वस्तु (बिम्ब) जैसे-2 दर्पण के पास स्थित हो वैसे ही प्रतिबिम्ब दर्पण से दूर व बड़ा बनता है।
उत्तल दर्पण में बिम्ब की विभिन्न स्थितियों में प्रतिबिम्ब का विवरण -
क्र.स. | बिम्ब की स्थिति | प्रतिबिम्ब की स्थिति | प्रतिबिम्ब का स्वरूप | प्रतिबिम्ब का आकार |
---|---|---|---|---|
1. | अनंत पर | दर्पण के पीछे फोकस पर | आभासी व सीधा | अत्यधिक छोटा बिंदुवत |
2. | अनंत तथा ध्रुव के बीच किसी भी दूरी पर | दर्पण के पीछे ध्रुव व F फोकस के बीच | आभासी व सीधा | छोट |
अवतल दर्पण का दैनिक जीवन में उपयोग-:
1. शैविंग दर्पण के रूप में (चेहरे का बड़ा प्रतिबिम्ब)
2. मोटर गाड़ियों के हेडलाइट, सर्च लाइट इत्यादि में प्रकाश का समान्तर किरण पुंज प्राप्त करने में।
3. सेटेलाइट डिश एन्टेनों में
4. परावर्तक टेलिस्कॉप में
5. दंत विशेषज्ञ द्वारा दांतों का बड़ा प्रतिबिम्ब देखने में > उपयोग
6. नाक/कान/गला विशेषज्ञ द्वारा
7. सौर कूकर, सौर सैल में, सौर-चूल्हों व उष्मको / सौर भट्टियों में।
उत्तल दर्पण का दैनिक जीवन में उपयोग-:
1. वाहनों में पश्च-दृश्य दर्पणों एवं पार्श्व दर्पण की तरह उत्तल दर्पण का उपयोग किया जाता है जिनकी सहायता से चालक अपने पीछे का दृश्य एवं वाहनों की स्थिति का अनुमान लगा सकते है अर्थात् उत्तल दर्पण का दृष्टि क्षेत्र बहुत अधिक होता है। क्योंकि ये बाहर की ओर वक्रित होते है।
2. नये ATM मशीनों के पास भी सुरक्षा की दृष्टि से उत्तल दर्पण लगाए जाते हैं ताकि ग्राहक को पीछे का पूरा दृश्य दिख सके।
3. सड़कों पर प्रयुक्त परावर्तक लैम्पों में
नोटः- अवतल दर्पण की फोकस दूरी वक्रता त्रिज्या की आधी होती है। अर्थात् अवतल दर्पण की वक्रता त्रिज्या फोकस दूरी से दुगुनी होती है। R=2f या f = R/ 2
दर्पण सुत्रः- 1/V + 1/u = 1/ f
V = प्रतिबिम्ब की ध्रुव से दूरी
u = वस्तु (बिम्ब) की ध्रुव से दूरी
f= फोकस की ध्रुव से दूरी
आवर्धनता (Magnification)- दर्पण द्वारा किसी बिम्ब को आवर्धित करने की क्षमता आवर्धनता कहलाती है।
आवर्धनता (m) =" प्रतिबिम्ब की ऊँचाई h' /बिम्ब की ऊँचाई h =V/u
m = ऋणात्मक = v > u प्रतिबिम्ब वास्तविक, उल्टा,
आवर्धित (बड़ा)
m = ऋणात्मक = v = u प्रतिबिम्ब वास्तविक, उल्टा एवं बिम्ब के समान आकार
m = ऋणात्मक v < u प्रतिबिम्ब वास्तविक उल्टा एवं छोटा
m = धनात्मक v > u प्रतिबिम्ब आभासी, सीधा व आवर्धित
उत्तल दर्पण हेतु m का मान धनात्मक ही होगा
Q ➤ समतल, उत्तल और अवतल दर्पण के क्या उपयोग हैं?
Q ➤ समतल दर्पण का क्या उपयोग होता है?
Q ➤ अवतल और उत्तल दर्पण के उपयोग क्या है?
Q ➤ उत्तल और अवतल दर्पण किसका उदाहरण है?
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