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एरिनपुरा में विद्रोह (21 अगस्त, 1857 ई.)
Erinpura - एरिनपुरा छावनी में 1857 का विद्रोह |
Erinpura वर्तमान में यह सिरोही जिले की शिवगंज तहसील में स्थित है 1835 ई. में अंग्रेजों ने जोधपुर की सेना के सवारों पर अकुशल होने का आरोप लगाकर जोधपुर लीजियन का गठन किया। इसका केन्द्र ऐरनपुरा रखा गया।
21 अगस्त, 1857 को जोधपुर लीजियन के सैनिकों ने विद्रोह कर आबू में अंग्रेज सैनिकों पर हमला कर दिया। यहाँ से ये ऐरनपुरा आ गये, जहाँ इन्होंने छावनी को लूट लिया तथा जोधपुर लीजियन के शेष सैनिकों को अपनी ओर मिलाकर "चलो दिल्ली, मारो फिरंगी " के नारे लगाते हुए दिल्ली की ओर चल पड़े। इस स्थान पर हुए विद्रोह का बिगुल जोधपुर लीजन के दफेदार मोती खाँ, शीतल प्रसाद व तिलकराय ने बजाया था।
रास्ते में आऊवा के ठाकुर कुशालसिंह चंपावत बागी सैनिकों का नेतृत्व स्वीकार कर अंग्रेजी सत्ता के विरुद्ध उठ खड़े हुए। कुशालसिंह चंपावत जोधपुर के तत्कालीन महाराणा तख्त सिंह के विरोधी सामन्तों के मुख्य नेता थे। कुशालसिंह के आह्वान पर आसोप, आलनियावास, गूलर, लाम्बिया, बन्तावास, रूद्रावास के जागीरदार भी ससैन्य इस विद्रोही सेना से आ मिले।
सलूम्बर व कोठारिया के सामंत सक्रियरूप से तो साथ न आये परन्तु उनका नैतिक समर्थन इनके साथ था। ठाकुर कुशाल सिंह ने बिठोड़ा के उत्तराधिकार में अनुचित हस्तक्षेप कर तख्त सिंह को नाराज कर दिया था।
8 सितम्बर, 1857 ई. को जोधपुर लोजियन के विद्रोही सैनिकों व सुगाली देवी के भक्त आउवा के ठाकुर कुशाल सिंह को संयुक्त सेना ने जोधपुर की राजकीय सेना (जिसका सेनापति ओनाड़सिंह था) को आउवा के पास बिठोड़ा (पाली) नामक स्थान पर पराजित किया, तथा लेफ्टिनेंट हीथकोट (जो जोधपुर की सेना के साथ था) को विवश होकर पीछे हटना पड़ा।
इस घटना के बाद ए.जी.जी. जार्ज लारेन्स सेना लेकर आऊवा पहुंचा, 18 सितम्बर, 1857 को विद्रोहियों व जार्ज लारेन्स की सेना के बीच चेलावास का युद्ध हुआ, भीषण संघर्ष में लारेन्स पराजित हुआ तथा बिद्रोहियों ने जोधपुर के पोलिटिकल एजेन्ट कप्तान मेक मैसन की हत्या कर आउवा के किले के दरवाजे के सामने उसके सिर को लटका दिया।
इसके बाद विद्रोही सैनिक आसोप के जागीरदार शिवनाथ सिंह के नेतृत्व में दिल्ली की ओर बढ़े, पर रास्ते में ही अंग्रेजी सेना के हाथों नारनौल में पराजित हुए। (इसके बाद बडलू के युद्ध में जोधपुर की सेना के हाथों भी आसोप के जागीरदार शिवनाथ सिंह को पराजय का सामना करना पड़ा।) ठाकुर शिवनाथ सिंह ने आत्मसमर्पण कर दिया।
आऊवा की पराजय का बदला लेने के लिए ए.जी.जी. जार्ज लारेन्स और होम्स के नेतृत्व में एक सेना आऊवा भेजी गयी, भीषण युद्ध के दौरान कुशाल सिंह सलूम्बर की ओर भाग निकले उन्होंने कोठरिया (मेवाड़) के रावत जोधसिंह के यहाँ शरण ली।
24 जनवरी, 1858 को आउवा पर अंग्रेजों ने पुनः अधिकार कर लिया अंग्रेजों ने आऊवा को लूटा तथा आऊवा स्थित सुगाली माता की महाकाली की मूर्ति को अजमेर ले आये। वर्तमान मे यह मूर्ति बांगड़ संग्राहलय पाली में रखी गई हैं।
ठाकुर कुशाल सिंह ने 8 अगस्त, 1860 ई. में अंग्रेजों के सामने नीमच में आत्म समर्पण कर दिया। बाद में मेजर टेलर जांच आयोग ने कुशालसिंह को 10 नवम्बर, 1860 ई. को दोष मुक्त कर दिया।
ठाकुर कुशालसिंह की मृत्यु 1864 ई. में उदयपुर में हुई। आउवा का विद्रोह राजस्थान में लोक गीतों में 'गोरों और कालों का युद्ध' कहलाता है
ठाकुर कुशाल सिंह ने 8 अगस्त, 1860 ई. में अंग्रेजों के सामने नीमच में आत्म समर्पण कर दिया। बाद में मेजर टेलर जांच आयोग ने कुशालसिंह को 10 नवम्बर, 1860 ई. को दोष मुक्त कर दिया।
ठाकुर कुशालसिंह की मृत्यु 1864 ई. में उदयपुर में हुई। आउवा का विद्रोह राजस्थान में लोक गीतों में 'गोरों और कालों का युद्ध' कहलाता है
Q ➤ एरिनपुरा छावनी का नेतृत्व किसने किया?
Q ➤ एरिनपुरा छावनी विद्रोह कब हुआ?
Q ➤ एरिनपुरा छावनी कहां स्थित है?
Q ➤ राजस्थान में 1857 की क्रांति के समय कौन सी सैनिक छावनी थी ?
Q ➤ 1857 की क्रांति के समय जोधपुर के तत्कालीन राजा थे।
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