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संधि एवं संधि विच्छेद (conjection of phonemes )
संधि विच्छेद
संधि शब्द सम् + धा + कि = सम् + धा + इ से बना है ।
संधि एवं संधि विच्छेद |
संधि (conjection of phonemes) की परिभाषा
संयोग(sayog)
ध्वनियों के पास पास आने के उपरांत भी यदि उनमें परिवर्तन ना हो तो उसे संधि नहीं संयोग कहा जाता है Iउदाहरण- युगांतर - युग + अंतर (संधि है )
युगबोध - युग + बोध (संयोग है )
संधि के प्रकार (Type of sandhi )
- स्वर संधि
- व्यंजन संधि
- विसर्ग संधि
अपवाद स्वरूप हिंदी में कुछ और भी संधि प्रचलित हैं।
स्वर संधि (vowal sandhi )
दो स्वरों के मेल से उत्पन्न हुआ विकार स्वर संधि कहलाता है स्वर संधि के पांच प्रकार होते हैं।- दीर्घ स्वर संधि
- गुण स्वर संधि
- वृद्धि स्वर संधि
- यण् स्वर संधि
- अयादि संधि
Recall - हिंदी में कुल 11 स्वर ( अ, आ, ऑ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ ) प्रचलित में है लेकिन संस्कृत में ऋ स्वर से बने शब्दों का प्रयोग भी होता है। जैसे - मातृ ,ऋतु
व्यंजन संधि ( consonant sandhi )
व्यंजन संधि में एक व्यंजन का किसी दूसरे व्यंजन से या स्वर से मेल होने पर एक व्यंजन में या कभी-कभी दोनों ही व्यंजनों में विकार पैदा होता है।Recall - व्यंजनो का वर्गीकरण मुख्यतः दो आधार पर होता है ।
1. प्रयत्न के आधार - घोष व अघोष और अनुनासिक व निरनुनासिक
घोष -जिन व्यंजनों के उच्चारण में हवा के गले से निकलने पर स्वरतंत्रियों में कंपन पैदा होता है उन व्यंजनों को घोष कहा जाता है जो व्यंजन वर्गो के तीसरे , चौथे ,पाँचवे व्यंजन
( ग् , घ् , ङ् ,
ज् , झ् , ञ्
ड् , ड़् , ढ, ढ़् , ण्
द् , ध् , न्
ब् , भ् , म्
य् , र् , ल् , व् , ह् )
समस्त स्वर घोष वर्ण होते हैं।
अघोष -जिनके उच्चारण में कंपन नहीं होता है उन्हें अघोष कहा जाता है ।जो व्यंजन वर्गों के पहले , दूसरे व्यंजन
(क् , ख्
च् , छ्
ट् , ठ्
त् , थ्
प् , फ्
श् , ष् , स् )
2. उच्चारण के आधार - कंठ्य , तालव्य , ओष्ठ्य, दंत्य , मूर्धन्य
कंठ्य - क, ख, ग, घ, ङ
तालु- वर्त्स्य - च , छ, ज, झ, ञ
मूर्धन्य (तालु के बीच वाला कठोर भाग ) - ट, ठ, ड, ढ , ण, ड़, ढ़ , र, ष
दंत्य - त, थ, द, ध
ओष्ठ्य - प, फ, ब, भ, म, व
वर्त्स (मसूङा ) - न, र, ल, स,
व्यंजन संधि के प्रकार
- घोष व्यंजन संधि
- अघोष व्यंजन संधि
- अनुनासिक व्यंजन संधि
- त/द की संधि
- मूर्धन्य व्यंजन संधि
- स् का तालव्यीकरण ( श् ) एवं मूर्धन्यीकरण ( ष् )
- व्यंजन लोप संधि
विसर्ग संधि (visrag sandhi)
संस्कृत (sanskrit) में विसर्ग एक विशिष्ट ध्वनि रही है यह ऊपर नीचे दो बिंदुओं ( : ) द्वारा लिखी गई है यह सदैव किसी ने किसी स्वर के बाद आती है हिंदी में यह ध्वनि नहीं है किंतु हिंदी में संस्कृत के कुछ विसर्ग वाले तत्सम शब्दों का प्रयोग होता है जैसे प्रायः , अतः , प्रात:काल , दुःख आदि ।यदि पहले शब्द के अंत में विसर्ग ध्वनि आती है तो उसके बाद में आने वाले शब्दों के स्वर और व्यंजन के साथ मिल जाती है ऐसी स्थिति में प्राय: कुछ ना कुछ ध्वनि विकार आता है जिसे विसर्ग संधि कहते है।
Q ➤ संधि और संयोग में क्या अंतर है?
Q ➤ संधि विच्छेद क्या है उदाहरण?
Q ➤ योग और संयोग में क्या अंतर है?
Q ➤ अ/आ + अ/आ = ?
Q ➤ अ + इ = ?
Q ➤ अ + ए = ?
Q ➤ अ + उ = ?
Q ➤ ऐ + भिन्न स्वर तो ‘ऐ’ का होगा –
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