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जैविक अपशिष्टों का निस्तारण
जैविक अपशिष्टों का निस्तारण: कम्पोस्टिंग
जैविक अपशिष्टों का निस्तारण एक महत्वपूर्ण पर्यावरणीय चिंता है, क्योंकि ये अपशिष्ट प्रदूषण का कारण बन सकते हैं और पर्यावरण को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
जैविक अपशिष्टों के प्रबंधन के लिए एक कारगर तरीका कम्पोस्टिंग है।
कम्पोस्टिंग एक प्रक्रिया है जिसमें जैविक अपशिष्टों को पोषक तत्वों में तोड़ा जाता है, जिनका उपयोग पौधों को उगाने और पोषण देने के लिए किया जा सकता है।
कम्पोस्टिंग की प्रक्रिया में निम्नलिखित चरण शामिल हैं:
1. अपशिष्ट संग्रह: जैविक अपशिष्टों को एकत्र कर एक निर्दिष्ट स्थान पर रखा जाता है।
2. अपशिष्ट का टुकड़ा करना: बड़े टुकड़ों को छोटे टुकड़ों में काटा या टुकड़ा किया जाता है, जिससे कम्पोस्टिंग की प्रक्रिया तेज हो सके।
3. हवा देना: अपशिष्ट में हवा मिलाने से बैक्टीरिया और अन्य सूक्ष्मजीवों को अपशिष्ट को तोड़ने में मदद मिलती है।
4. कम्पोस्ट की ढेर लगाना: अपशिष्ट को एक ढेर में व्यवस्थित किया जाता है, जिसे हवा देने और सूक्ष्मजीवों की क्रिया के लिए पर्याप्त हवा की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए नियमित रूप से पलटा जाता है।
5. कम्पोस्ट की निगरानी: कम्पोस्ट की प्रगति की निगरानी की जाती है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यह सही ढंग से काम कर रहा है और पोषक तत्वों को समान रूप से वितरित कर रहा है।
6. कम्पोस्ट का उपयोग: एक बार जब कम्पोस्ट तैयार हो जाता है, तो इसे पौधों को उगाने और पोषण देने के लिए उपयोग किया जा सकता है।
कम्पोस्टिंग जैविक अपशिष्टों के निस्तारण का एक प्रभावी और पर्यावरण-अनुकूल तरीका है। यह न केवल प्रदूषण को कम करता है बल्कि मिट्टी की गुणवत्ता में भी सुधार करता है, जिससे स्वस्थ और टिकाऊ कृषि प्रथाओं को बढ़ावा मिलता है।
वर्मी कम्पोस्टिंग (केंचुआ की खाद)
वर्मी कम्पोस्टिंग जैविक अपशिष्टों के निस्तारण की एक प्रक्रिया है जिसमें वर्म (केंचुए) का उपयोग करके जैविक अपशिष्ट को पोषक तत्वों से भरपूर खाद में बदला जाता है। यह प्रक्रिया प्रदूषण को कम करने, मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार करने और पौधों के विकास को बढ़ावा देने में मदद करती है।
वर्मी कम्पोस्टिंग की प्रक्रिया में निम्नलिखित चरण शामिल हैं:
1. अपशिष्ट संग्रह: जैविक अपशिष्टों को एकत्र कर एक निर्दिष्ट स्थान पर रखा जाता है।
2. वर्मी का परिचय: अपशिष्ट में केंचुओं को मिलाया जाता है, जो अपशिष्ट को खाने के लिए आते हैं।
3. वर्मी की क्रिया: केंचुए अपशिष्ट को खाते हैं और उसके साथ मिट्टी, कार्बनिक पदार्थ और अपने स्राव को मिलाते हैं।
4. खाद का निर्माण: केंचुओं की क्रिया के कारण अपशिष्ट पोषक तत्वों में टूट जाता है, जिसे खाद कहा जाता है।
5. खाद की निकासी: खाद को निकाल कर उपयोग के लिए तैयार किया जाता है।
वर्मी कम्पोस्टिंग एक प्रभावी और पर्यावरण-अनुकूल तरीका है जो जैविक अपशिष्टों के निस्तारण में मदद करता है। यह मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार करता है, प्रदूषण को कम करता है और पौधों के विकास को बढ़ावा देता है।
वर्मी कम्पोस्ट डेढ़ से दो माह (60days) के अंदर तैयार हो जाता है। इसमें 2.5 से 3% नाइट्रोजन, 1.5 से 2% सल्फर तथा 1.5 से 2% पोटाश पाया जाता है।
केंचुएँ के प्रकार
एपिजिक- यह भूमि में 1 मीटर तक की गहराई तक जाते हैं जो कृषि अवशिष्टों को अधिक खाते हैं (90% वानस्पतिक भाग व 10% मृदा) वर्मी कम्पोस्ट बनाने के लिए इन्हीं केंचुओं का उपयोग किया जाता है। इनकी कुछ प्रजातियाँ निम्न हैं आईसीनिया फॉईटिडा (राजस्थान हेतु सर्वोत्तम), फेरेटिमा इलोन्गेटा, पेरेनिप्स आर्वोशीकॉली
इन्डोजिक- यह किस्म जल निकास में उपयोगी है क्योंकि ये केंचुएँ भूमि में गहरी सुरंगे (3 मीटर से अधिक) बनाते हैं।
डायोजिक- ये केंचुए 1 से 3 मीटर की गहराई पर रहते हैं एवं दोनों प्रजातियों के बीच की श्रेणी में आते हैं।
कम्पोस्टिंग की विधियाँ
कम्पोस्टिंग की इंदौर विधि एक पारंपरिक कम्पोस्टिंग तकनीक है जिसे 20वीं शताब्दी की शुरुआत में सर अल्बर्ट हावर्ड और उनके सहयोगियों द्वारा विकसित किया गया था, जिसमें भारतीय कृषक यशवंत डी वाड भी शामिल थे। इसमें हरी सामग्री (नाइट्रोजन-समृद्ध) और भूरे रंग की सामग्री (कार्बन-समृद्ध) के बीच बारी-बारी से परतों में खाद बनाना शामिल है। पर्याप्त ऑक्सीजन की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए इस खाद प्रणाली में उचित वातन महत्वपूर्ण है।
इंदौर विधि
Indore Composting System |
इंदौर विधि एक वायवीय विधि है। गड्ढों में कम्पोस्टिंग की इंदौर विधि में बैंगलोर विधि के सामान मोटाई की एकान्तर परतें भरना शामिल है। हालाँकि, वायवीय स्थिति को सुनिश्चित करने के लिए सामग्री को विशिष्ट अंतरालों में पलटा जाता है, जिसके लिए गड्ढे की लंबवत बाजू पर 60 cm चौड़ी पट्टी को खाली रखा जाता है।
अवायवीय अपघटन को रोकने और लाभकारी सूक्ष्मजीवों के विकास को बढ़ावा देने के लिए खाद के ढेर को नियमित रूप से, आमतौर पर हर कुछ हफ्तों में घुमाया जाता है। सफल खाद बनाने के लिए सही नमी के स्तर को बनाए रखना आवश्यक है। इंदौर कम्पोस्टिंग प्रणाली का अंतिम परिणाम उच्च गुणवत्ता वाला, ह्यूमस से भरपूर खाद है जिसका उपयोग मिट्टी की संरचना, उर्वरता और जल प्रतिधारण में सुधार के लिए किया जाता है। यह विधि टिकाऊ और जैविक प्रथाओं, जैविक कचरे के पुनर्चक्रण, मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार और कृत्रिम रासायनिक उर्वरकों की आवश्यकता को कम करने पर जोर देती है। इंदौर विधि दुनिया भर में जैविक और खाद बनाने की प्रथाओं में प्रभावशाली रही है, और इसका उपयोग एफ. सी. किंग द्वारा लेवेन्स हॉल में अपनी नो-डिग प्रणाली में किया गया था। यह कंपोस्ट बनाने की महंगी विधि है
बैंगलोर विधि
Bangalore Composting System |
बैंगलोर विधि एक अवायवीय विधि है जिसे पारंपरिक रूप से गड्ढों में तैयार किया जाता है। कम्पोस्टिंग की बंगलौर विधि में, 25 cm मोटी की सूखी अपशिष्ट सामग्री को एक गड्ढे में फैलाया जाता है और उस पर पानी में गोबर का एक मोटा निलंबन नमी के लिए छिड़का जाता है। यह एक सस्ती विधि है
नॉडेप कम्पोस्ट विधि
NADEP Method of Composting |
नॉडेप कम्पोस्ट विधि का तरीका महाराष्ट्र के एक प्रगतिशील कृषक नारायण राव पण्डारी (नॉडेप काका) ने विकसित किया है । यह विधि कम्पोस्ट को जमीन की सतह पर ढांचा बनाकर उसमें फसल अवशेष मिट्टी, गोबर के सहयोग से बनायी जाती है तथा मात्रा 100 किग्रा. गोबर से 3000 किग्रा. कम्पोस्ट खाद 90-100 दिन में प्राप्त होती है ।
गोबर व मूत्र का उचित निष्पादन
गोबर की खाद, जिसे गोबर की खाद या कृमि खाद के रूप में भी जाना जाता है, एक प्राकृतिक और पौष्टिक खाद है जो सेंद्रिय पदार्थों से समृद्ध है। इसे गाय, भैंस और बकरी जैसे पशुओं के मल और मूत्र से बनाया जाता है। गोबर की खाद के उपयोग के कुछ लाभ यहां दिए गए हैं:
1. पोषक तत्वों से भरपूर: गोबर की खाद नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटेशियम जैसे आवश्यक पोषक तत्वों से समृद्ध होती है, जो पौधों के विकास और विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं।
2. मिट्टी की संरचना में सुधार: खाद मिट्टी की संरचना को सुधारती है, जिससे पानी की घुसपैठ बढ़ती है, मिट्टी के कटाव को कम किया जा सकता है और पौधों की जड़ों को सहारा मिलता है।
3. पर्यावरण-अनुकूल: गोबर की खाद का उपयोग करके, किसान रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों की आवश्यकता को कम कर सकते हैं, जिससे पर्यावरण प्रदूषण को कम करने में मदद मिलती है।
4. लागत प्रभावी: गोबर की खाद का उत्पादन स्थानीय संसाधनों का उपयोग करके किया जा सकता है, जिससे यह किसानों के लिए लागत प्रभावी और सस्ती हो जाती है।
फसलों में 10-20 प्रति हैक्टयर गोबर की खाद देते हैं। फलदार पौधों में 10-20 Kg प्रति पौधा गोबर की खादा पर्याप्त रहती है। खाद का प्रयोग बुआई से एक महिने पूर्व किया जाता है।
गोबर की खाद बनाने की विधि खाई विधि या ट्रेच विधि है। सी. एन. आचार्य दी गईहै।
अच्छी तरह सड़ने के लिए गोबर की खाद की 1-3 महिने कर समय लगता है। गोबर की खाद का प्रभावीत में 2 से 3 वर्षों तक रहता है।
मानव मल को night soil कहते हैं
पशुओं के चमड़े व हड्डियों का उपयोग
चमड़े का उपयोग :-
वस्त्र निर्माण पशुओं के चमड़े का उपयोग वस्त्र बनाने में किया जा सकता है। चमड़े का उपयोग जैसे कि जूते, कोट, बेल्ट, और अन्य प्रकार के कपड़े बनाने में किया जाता है।
सजावट पशुओं के चमड़े का उपयोग सजावट और आभूषण बनाने में किया जा सकता है, जैसे कि तालाबंधी, जूती उत्पादन, और अन्य क्राफ्ट आइटम के लिए।
फर्नीचर- चमड़े का उपयोग फर्नीचर जैसे कि सोफे, कुर्सियाँ और अन्य आइटम्स के लिए भी किया जा सकता है।
आयुर्वेदिक औषधियों में भी पशुओं के चमड़े का उपयोग किया जाता है, जैसे कि तम्बूल, वीडिंग और अन्य औषधियों के पैकेटिंग के लिए.
हड्डियों का उपयोग :-
विभिन्न उद्योगों में हड्डियां किसी भी उद्योग में जैसे कि मशीनरी निर्माण, उपकरण निर्माण, और उर्वरक उद्योगों के लिए उपयोग की जाती हैं
प्राचीन काल में, हड्डियों का उपयोग डाइस (पांसे), बटन और चाकुओं के हत्थे बनाने में किया जाता था। आजकल उनके स्थान पर प्लास्टिक सामग्रियों का उपयोग किया जाता है।
हड्डियों का वर्गीकरण
i) कच्ची हड्डियां- ताजे मरे पशुओं से प्राप्त हड्डियां
ii) शुष्क हड्डियां
व्यावसायिक कार्यों के लिए हड्डियों को पुनः निम्न में वर्गीकृत किया जाता है:
जिलेटिन के स्रोत के रूप में हड्डियां
फॉस्फेट के स्रोत के रूप में हड्डियां
जिलेटिन और ग्लू/गोंद
बोनमील
नीट्स फुट ऑयल
जिलेटिन
जिलेटिन |
जिलेटिन के खाद्य उपयोग आइसक्रीम, जैली और मृदु चॉकलेट में फेन उत्पन्न करने वाले कर्मक के रूप में, कैप्सूल बनाने में, व्यंजनों में बंधनकारी कर्मक के रूप में और रक्त चढ़ाने में प्लास्मा विस्तारक के रूप में है। व्यावसायिक रूप से, इसका उपयोग वस्त्र और चमड़ा उद्योग में सज्जीकरण कर्मक के रूप में और फोटोग्राफी आदि में किया जाता है। ग्लू/गोंद प्लाईवुड, फर्नीचर, सेन्डपेयर, चिपकने वाले टेप आदि में प्रमुख संसंजक के रूप में उपयोग किया जाता है।
बोनमील
बोनमील/bonemeal |
2 मिमी से कम आमाप के हड्डियों के टुकड़े बोनमील बनाते हैं। निर्जमीकृत बोनमील पशु चारे में फॉस्फेट पूरक का एक अच्छा स्रोत है। अपने आहार और चारे में पर्याप्त फॉस्फोरस से वंचित पशु ऑस्टियोफेजिया, ऑस्टियोपोरोसिस, रिकैट्स, आदि रोगों से पीड़ित हो जाते हैं।
नीट्स फुट ऑयल
नीट्स फुट ऑयल |
खुरों से पृथक की जाने वाली शिन (नरहर) हड्डियों का उपयोग नीट्स फुट ऑयल बनाने में किया जाता है।
इसका उपयोग मशीनरी (हवाईजहाज, जहाज और कीमती घड़ियां आदि) चमड़े की टैनिंग (चर्म, शोधन) और घाव भरने के मल्हमों को बनाने में किया जाता है। वर्तमान में भारत में कोई व्यवसायिक प्रतिष्ठान इस तेल का निर्माण नहीं करता है।
सींग और खुर का उपयोग
सींग का उपयोग
सींग दो भागों के बने होते हैं सींग मज्जा और सींग विशिष्ट । सींग मज्जा कोर या भीतरी भाग बनाती है। जैसा कि पहले बताया गया है, यह जिलेटिन बनाने के लिए बहुत अच्छा कच्चा माल है, अथवा वैकल्पिक रूप से इसका उपयोग बोनमील बनाने के लिए भी किया जा सकता है।
बाहरी भाग अथवा सींग विशिष्ट अधिकतर किरेटिन होता है। कुछ वस्तुओं जैसे बटन, कंधों, हैन्डल, सजावटी वस्तुओं आदि को सींग विशिष्ट से बनाया जा सकता है
खुर का उपयोग
खुरों को भी सींगों की भांति ही उपयोग किया जा सकता है। इन्हें सफेद, पट्टीदार और काले के रूप में श्रेणीकृत किया जाता है। सफेद खुरों की कीमत सबसे अधिक होती है। नीट्स फुट ऑयल के प्रसंस्करण के काल में, खुर के कवच अथवा बाहरी आवरण को सुखा कर चूर्णित करके उर्वरक के रूप में अथवा कलाकृतियां बनाने में उपयोग किया जा सकता है।
हॉर्न एवं हूफमील
बोनमील का उत्पादन करने वाली परिष्करण इकाई का उपयोग महीने में कुछ दिनों के लिए हॉर्न और हूफ मील (सींग और खुर से निर्मित आहार) बनाने के लिए भी किया जा सकता है जोकि बहुत अच्छा नाइट्रोजनी उर्वरक होता है। हॉर्न और हूफ मील मृदा की उर्वरता को बढ़ा देता है, क्योंकि इसमें नाइट्रोजन की मात्रा अधिक होती है।
बाल का उपयोग
गाय के बालों के पूरी तरह सूख जाने पर उनमें बेहतरीन तापरोधी गुण होते हैं और उनका उपयोग गलीचों के फेल्ट (रोओं) के लिए किया जाता है। बालों का उपयोग बुश बनाने में भी किया जाता है। सूअर के रासायनिक रूप से शुद्धीकृत किए गए छोटे बालों का उपयोग गद्दों में भरने अथवा फर्नीचर बनाने वालों द्वारा कुर्सियों और कुशन में भरने के लिए किया जाता है। मृत और वध की गई गाय और भैंसों की पूंछ के बालों का उपयोग विभिन्न प्रकार के बुश बनाने में किया जाता है।
ऊन के उपयोग
पशु की नस्ल के आधार पर, ऊन रूक्ष, मोटी या बारीक हो सकती है। कुछ बारीक ऊन निर्मित करने वाले पशु मेरीनो भेड़ों, पशमीना बकरियां और अंगोरा खरगोश हैं। भारत की अधिकांश भेड की नस्लें रूक्ष ऊन देती हैं, जिनका उपयोग गलीचे और कम्बल बनाने में किया जाता है। बारीक ऊन का उपयोग वस्त्र, ऊनी वस्त्र और स्वेटर आदि बनाने में किया जाता है। ऊन की गुणवत्ता शरीर पर उसके स्थान पर भी निर्भर करती है जैसे कंधे के क्षेत्र से सबसे अच्छी बारीक ऊन प्राप्त होती है।
शूकों का उपयोग
शूक सूअर, शूकर या वन्य सूअर के कड़े घने बाल होते हैं। इनका उपयोग विभिन्न प्रकार के बुर्श बनाने में किया जाता है। शूकों को सामान्यतः पीठ, गर्दन और पूंछ से प्राप्त किया जाता है
Q ➤ निम्न में से केंचुए की खाद में पोटाश कितना प्रतिशत पाया जाता है?
Q ➤ निम्न में से कंपोस्ट बनाने की सबसे महंगी विधि कौन सी है ?
Q ➤ निम्न में से गोबर की खाद बनाने की खाई विधि का सर्वप्रथम प्रयोग किस वैज्ञानिक ने किया ?
Q ➤ निम्न में से गोबर की खाद में फास्फोरस कितने प्रतिशत पाया जाता है?
Q ➤ निम्न में से वर्मी कंपोस्ट को बनने में कितना समय लगता है ?
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