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महाराणा प्रताप को कीका क्यों कहा जाता है?

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महाराणा प्रताप


                              महाराणा प्रताप 
                       मेवाड  के 13वे महाराणा
पुरा नाम              महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया                    
घराना 
सिसोदिया राजपूत
पिता                   महाराणा उदयसिंह
माता   महाराणी जयवंताबाई
धर्म  सनातन धर्म
जीवनसंगी महारानी अजबदे पंवार सहित कुल 11 पत्नियां
शिक्षक आचार्या राघवेन्द्र
राज्याभिषेक  28 फ़रवरी 1572
संतान अमर सिंह प्रथम ,भगवान दास (17 पुत्र)


महाराणा प्रताप का बाल्य काल -

महाराणा प्रताप का जन्म वि.स.1597 ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया, रविवार (9 मई 1540)को हुआ| यह तिथि ज्योतिषी चंडू जोधपुर के यहां से मिली जन्म कुंडली के आधार पर गौरीशंकर ओझा ने बताई| वीर विनोद का जन्म वि. स. 1596, ज्येष्ठ सुदी 13 को होना लिखा है | 

महाराणा प्रताप के जन्म स्थान से संबंधित कोई पुख्ता जानकारी प्राप्त नहीं है | क्योंकि 1540 ई. को महाराणा उदय सिंह ने बनवीर को हराकर चितौड़ में प्रवेश कर लिया था| इस आधार पर देवीलाल पालीवाल ने महाराणा की जन्म स्थली कुंभल गढ़ बताई है|
ऐसी भी मान्यता है कि महाराणा प्रताप का जन्म उनके ननिहाल पाली में हुआ था| महाराणा प्रताप की माता पाली के अखेराज सोनगरा की पुत्री थी| पाली में महाराणा का जन्म महाराव के गढ़ में हुआ माना जाता हैं | हिन्दुओं में ऐसी मान्यता है कि प्रथम पुत्र ननिहाल में होता है, इस आधार पर मानते है कि जैवन्ता बाई का प्रथम पुत्र ननिहाल पाली में हुआ होगा| देवीलाल इस मत से सहमत नहीं है वे कहते है राज परिवार में ऐसी मान्यता का प्रचलन नहीं था|
महाराणा प्रताप का लालन पालन उनके पिता की छत्र छाया में कुंभलगढ़ व चितौड़ गढ में हुआ| राजपूत राजकुमारों को दी जाने वाली शिक्षा दी गई| नीति व धर्म , घुड़सवारी , घोड़ों की पहचान , अस्त्र शस्त्र का प्रयोग, सैन्य संचालन ,सैन्य रचना की जानकारी प्रदान की गई| युवा होते होते वे दक्ष योद्धा , कुशल नीति के जानकार व योग्य सैन्य संचालक बन गए| 

महाराणा प्रताप के अन्य नाम -


अमर काव्य वंशावली के अनुसार प्रताप ने अपने कुंवर काल में बागड पर आक्रमण करके बागड को मेवाड़ में मिला लिया था|
महाराणा प्रताप को कीका भी कहा जाता है, कीका संस्कृत का शब्द है ,जिसका अर्थ प्रभाव है |
अबुल फजल ,बदायूंनी ,निजामुद्दीन ने अपने ग्रंथो में प्रताप के नाम की जगह राणा कीका शब्द का प्रयोग किया है|
भटियाणी रानी के प्रभाव के कारण महाराणा की उपेक्षा की जाने लगी | जब प्रताप कुंभल गढ़ से चितौड़ पहुंचे तब उन्हें चितौड़ में रहने की व्यवस्था न करके चितौड़ के बाहर तलहट में एक गांव में कि गई| उनके साथ रहने के लिए केवल 10 राजपूत नियुक्त किए गए थे| राज्य की और से जब भोजन भेजा जाता था तो एक ही रसोइया सबके लिए भोजन तैयार करता था, प्रताप अपने साथियों के साथ एक ही पंक्ति में बैठकर भोजन करते थे, | साथ में बैठकर भोजन करने की ये रिवाज महाराणा प्रताप ने राजगद्दी पर बैठने के बाद जारी रखी| इस घटना का वर्णन अमर काव्य में बड़े ही मार्मिक तरीके से कि गई है|

महाराणा प्रताप के युद्ध अभियान-


महाराणा प्रताप अपने पिता के समय से ही मुग़लों से लड़ते रहे थे । मेवाड पर लगे मुग़लों के इस ग्रहण का अंत 1585 में हुआ । इसके बाद महाराणा प्रताप अपने राज्य के सुख साधन के विकास में लग गए जिस मेवाड को मुग़लों ने उजाड दिया था उसे बसाने में लग गए थे। लेकिन दुर्भाग्य से 19जनवरी 1597 उनका देवलोक गमन हो गया।
टॉड के अनुसार मृत्यु के समय महाराणा को बहुत कष्ट हो रहा था , प्राण नही निकल रहे थे । शायद उन्हें उस समय भी मेवाड की रक्षा की चिंता सता रही थी । तब सलुम्बर के रावत जी ने हिम्मत करके पूछा महाराणा जी किस बात की चिंता सता रही है। तब महाराणा ने कहा मुझे मेवाड़ की चिंता सता रही है । कुंवर अमरसिंह कहीं मुग़लों की अधीनता स्वीकार ना कर ले तब सामंतो ने महाराणा को विश्वास दिलाया की हम कभी अमरसिंह को अधीनता स्वीकार नहीं करने देंगे , तब महाराणा के प्राण निकले।
महाराणा की मृत्यु किस रोग से हुईं इस विषय में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता। इस विषय में कहा जाता है कि एक दिन शिकार करते समय उनके पाँव में चोट लग गयी । लगातार संघर्ष जीवन व कठिन परिश्रम से उनका शरीर कमजोर हो गया था , इस चोट के कारण महाराणा बीमार हो गए कुछ दिनो बाद उनकी मृत्यु हो गयी ।
अबुल फ़ज़ल ने आकरबरनमा में लिखा है कि अमरसिंह ने महाराणा को ज़हर दे दिया था इससे उनकी मृत्यु हुई । अबुल फ़ज़ल के अलावा इस बात का अन्य कही वर्णन नहीं मिलता किसी भी समकालीन इतिहासकार ने इस बात का उल्लेख नहीं किया , इस कारण अबुल फ़ज़ल का ये मत ग़लत माना जाता है ।
महाराणा प्रताप की मृत्यु टॉड पिछोला झील के पास लिखता है जबकि उनकी मृत्यु चावण्ड में हुईं थी। बाडोली में उनका अंतिम संस्कार हुआ। यहाँ पर स्मारक के रूप में एक समाधि बनी है, व 8 खम्भों की छतरी बनी है। यहाँ 1601 में महाराणा प्रताप की बहन के विषय में एक पाषाण लेख लगा दिया जिससे लोगों को भ्रम हो जाता है , की यह महाराणा की नही उनकी बहिन की समाधि है , जो सत्य नहीं है।

महाराणा की मृत्यु पर अकबर की प्रतिक्रिया - 


महाराणा का जैसा चरित्र था वैसा उनके समकालीन किसी राजा का चरित्र नहीं था । उनका देश के प्रति अभिमान वीरता ओर चरित्र के कारण महाराणा प्रताप भारतीय संस्कृति के संरक्षक बन गए।
अकबर महाराणा प्रताप का सबसे बड़ा शत्रु था परंतु फिर भी वह महाराणा प्रताप की मन ही मन उनकी वीरता की प्रशंसा करता था ।वह महाराणा प्रताप का गुण ग्राही था।
महाराणा प्रताप की मृत्यु पर अकबर को बहुत दुख हुआ क्योंकि हृदय से उसके गुणों की प्रशंसा करता था ,महाराणा प्रताप की मृत्यु का समाचार सुनकर अकबर रहस्यमय रूप से मौन हो गया अकबर की यह प्रतिक्रिया दरबारियों से छिपी नहीं रह सकी किंतु कोई कुछ नहीं कह सका उसी समय उनके दरबार में एक चारण कवि दुरसा आडा प्रताप के प्रति श्रद्धा युक्त कविता पढ़ी सभी दरबारियों को विश्वास था कि इससे चारण दुरसा को बादशाह का का कोप भाजक बनना पड़ेगा सभी निर्णय की उत्सुकता से प्रतीक्षा करने लगे किंतु ऐसा कुछ नहीं हुआ अकबर ने दुरसा आडा को अपने सामने बुलाया तथा उसे पुन: कविता सुनाने का आदेश दिया चारण ने पुनः अपना छप्पय सुनाया जो इस प्रकार था:-
“मारवाड़ी भाषा की कविता का हिंदी अर्थ इस प्रकार है जिसने कभी अपने घोड़ों को शाही सेना में भेजकर दाग नहीं लगवाया जिसने अपनी पगड़ी किसी के आगे नहीं झुकाई जो समस्त भारत के भार को को बाएं कंधे से खींचने में समर्थ था ,जो कभी न्योरोज के त्योहार पर नहीं आया ।और जिस अकबर के झरोखे के नीचे सभी राजा आये लेकिन महाराणा कभी नहीं आया इसलिए बादशाह अकबर की आंखों में भी पानी भर आया है उसने आश्चर्य से जीभ दांतो तले दबा ली है, हे प्रताप तू जीत गया है।”
इस छप्पय को सुनने के बाद अकबर ने दुरसा आडा से कहा कि तुमने मेरे मनोभावों को अच्छी तरह से पढ़ लिया है इस पर उसने चारण को पुरस्कार भी दिया
किसी की महानता को इससे बढ़कर और क्या प्रमाण हो सकता है कि उसकी शत्रु भी उसकी प्रशंसा करें वास्तव में महाराणा प्रताप की मृत्यु से मेवाड़ का ही नहीं भारत के इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय समाप्त हो गया
उनकी मृत्यु पर गोपीनाथ शर्मा लिखते हैं “प्रताप की मृत्यु से एक युग की समाप्ति होती है राजपूत राजनीति मच से एक सुयोग्य एवं चमत्कारी व्यक्ति चला गया अपनी राजनीतिक दूरदर्शिता थी उसने अपने पड़ोसी राज्यों से मित्रता संबंध स्थापित कर चतुराई से मुगलों का ध्यान मेवाड़ से हटाकर उन राज्यों की ओर लगा दिया यह युक्ति सफल हो गई ।अपने सैनिकों को कर्म परायणता का पाठ पढ़ाया प्रजा को आशावादी होने की प्रेरणा दी और शत्रु को उसके प्रति सम्मान प्रदर्शित करने की सीख दी।

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