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Lesson-2
📕दंड प्रक्रिया संहिता (सी.आर.पी.सी) 1973 :-
दंड प्रक्रिया संहिता 1973 भारत में आपराधिक कानून के क्रियान्वयन के लिए मुख्य कानून है। 1973 में पारित होकर यह कानून 1974 में लागू हुआ। दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत, हमेशा दो प्रक्रियाएं होती हैं, जिन्हें पुलिस अपराध की जांच करने में अपनाती है। एक प्रक्रिया पीड़ित के सम्बन्ध में और दूसरी आरोपी के सम्बन्ध में। दंड प्रक्रिया संहिता / सी.आर.पी.सी में इन दोनों प्रक्रियाओं का ब्यौरा दिया जाता है।
📕इस कानून की धारा 376-
बलात्कार, धारा 376 ए- स्त्री के साथ, उसकी सहमति या सहमति के बिना, डरा धमकाकर, या उसके प्रियजनों की मृत्यु का भय दिखाकर उसके साथ किया गया बलात्कार, जिसके कारण उस स्त्री को कोई गंभीर क्षति पहुचती है, या उसकी मृत्यु हो जाती है, धारा 376 बी-, पति द्वारा पत्नी से अलग होने की स्थिति में पति द्वारा पत्नी की सहमति के बिना उससे शारीरिक सम्बन्ध बनाना, बलात्कार माना जायेगा, धारा 376 ए बी- 2 वर्ष से कम उम्र की स्त्री के साथ बलात्कार, धारा 376 सी- किसी अधिकारी, लोक सेवक, जेल, रिमांड होम, अभिरक्षा के किसी अन्य स्थान, स्त्रियों या बालकों की संस्था का अधीक्षक या प्रबंधक, या अस्पताल का कर्मचारी होते हुए, ऐसी किसी स्त्री जो उसकी अभिरक्षा में है या अधीन है या परिसर में उपस्थित है उस स्त्री के साथ यौन अपराध कारित करना, धारा 376 डी- एक या एक से अधिक व्यक्ति द्वारा किसी महिला के साथ सामूहिक बलात्कार, धारा 376 डी ए- 46 वर्ष से कम उम्र की महिला का एक या एक से अधिक व्यक्ति द्वारा मिलकर सामूहिक बलात्कार , धारा 376 डी बी-2 वर्ष से कम उम्र की महिला का एक या एक से अधिक व्यक्ति द्वारा मिलकर सामूहिक बलात्कार, धारा 376 ई- भारतीय दंड संहिता की धारा 376. 376 ए, या 376 डी, के अधीन दंडनीय किसी अपराधों के लिए पहले कभी दण्डित किया गया हो और बलात्कार के अपराध में 376, 376 ए, 376 बी, 376 सी, 376 डी में बताये गए किसी भी अपराध की पुर्नरावति करता है, इन सभी धाराओं में महिलाओं के लिए विशेष प्रावधान है। जैसे किसी भी महिला आरोपी को बिना किसी महिला कांस्टेबल के शाम 6 बजे के बाद अथवा सुबह 6 बजे से पहले गिरफ्तार नहीं किया जा सकता |📕भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872, की धारा (53 ए) :-
भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की घारा 354, 354 क, 354 ख, 354 ग, 354 घ व 376 , 376 ए, 376 एबी, 376 बी, 376 सी, 376 डी, 376 डीए, 376 डीबी, 376 ई के अधीन किसी अपराध के लिए किसी अभियोजन में या किसी ऐसे अपराध के करने के प्रयत्न के लिए सम्मति का विवाद्य है। वहाँ पीडिता के आचरण या ऐसे व्यक्ति को किसी व्यक्ति के साथ पूर्व लैंगिक अनुभव का साक्ष्य ऐसी सम्मति या सम्मति की गुणता के मुददे पर सुसंगत नहीं होगा ।
📕भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872, की धारा (114 ए) :-
भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 376 , 376 ए, 376 एबी, 376 बी, 376 सी, 376 डी, 376 डीए, 376 डीबी, 376 ई के अधीन किसी अभियोजन में जहाँ अभियुक्त द्वारा मैथुन किया जाना साबित हो जाता है। और प्रश्न यह है कि क्या वह उस स्त्री की, जिसके बारे में यह अभिकथन किया गया है कि उससे बलात्संग किया गया है, सम्मति के बिना किया गया है और ऐसी स्त्री अपने साक्ष्य में न्यायालय के समक्ष यह कथन करती है कि उसने सम्मति नहीं दी थी, वहाँ न्यायालय यह उपधारणा करेगा कि उसने सम्मति नहीं दी थी।
📕भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872, की धारा (114 बी) :-
भारतीय दण्ड संहिता (1860) की घारा 354, 354 क, 354 ख, 354 ग, 354 घ व धारा 509, 509 क, 509 ख के अन्तर्गत किसी व्यक्ति ने अपराध कारित किया है और यदि पीडित न्यायालय के समक्ष यह कथन करती है कि उसका यौन उत्पीडन हुआ या उसकी लज्जा भंग हुई है अथवा उसके कपडे उतारे गये है अथवा उसका पीछा किया गया है या उसकी निष्ठा में हस्तक्षेप किया गया अथवा वह किन्हीं साधानों द्वारा यौन उत्पीडित की गई है। वहाँ न्यायालय जब तक कि विपरीत साबित ना हो तब तक यह उप धारणा कर सकेगा कि ऐसा अपराध उस व्यक्ति द्वारा कारित किया गया।
📕दहेज निषेध अधिनियम 1961 (संशोधित 1986)-
दहेज निषेध अधिनियम, 1961। की धारा 2 को दहेज (निषेध) अधिनियम 1984 और 1986 के अंतर्गत दहेज लेने, देने या इसके लेन-देन में सहयोग करना दोनों अपराध है। दहेज लेने-देने, या इसके लेन-देन में सहयोग करने पर 5 वर्ष की कैद और 15,000 रूपये के जुर्माने का प्रावधान है |
दहेज लेने और देने या दहेज लेने और देने के लिए उकसाने पर या तो 6 महीने का अधिकतम कारावास है या 5000 रूपये तक का जुर्माना अदा करना पड़ता है। वधु के माता-पिता या अभिभावकों से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से दहेज की मांग करने पर भी यही सजा दी जाती है। बाद में संशोधन अधिनियम के द्वारा इन सजाओं को भी बढाकर न्यूनतम 6 महीने और अधिकतम दस साल की कैद की सजा तय कर दी गयी है। वहीँ जुर्मने की रकम को बढ़ाकर 40,000 रूपये, ली गयी, दी गयी या मांगी गयी दहेज की रकम, दोनों में से जो भी अधिक हो, के बराबर कर दिया गया है। हालाँकि अदालत ने न्यूनतम सजा को कम करने का फैसला किया है लेकिन ऐसा करने के लिए अदालत को जरूरी और विशेष कारणों की आवश्यकता होती है (दहेज निषेध अधिनियम, 1961। की धारा 3 और 4) दंडनीय है- दहेज देना, दहेज लेना, दहेज लेने और देने के लिए उकसाना एवं वधु के माता-पिता या अभिभावकों से सीधे या परोक्ष तौर पर दहेज की मांग करना।
भारतीय दंड संहिता की धारा 498 ए निर्ममता तथा दहेज के लिए उत्पीड़न, 304 बी इससे होने वाली मृत्यु और 306 भादसं- उत्पीड़न से तंग आकर महिलाओं द्वारा आत्महत्या के लिए प्रेरित करने वाली घटनाओं से निपटने के लिए कानूनी प्रावधान है |
यदि किसी लड़की की विवाह के सात साल के भीतर असामान्य परिस्थितियों में मौत होती है और यह साबित कर दिया जाता है कि मौत से पहले उसे दहेज के लिए प्रताड़ित किया जाता था, तो भारतीय दंड संहिता की धारा 304-बी के अंतर्गत लड़की के पति और रिश्तेदारों को कम से कम सात वर्ष से लेकर आजीवन कारावास की सजा हो सकती है।
इस अधिनियम के अंतर्गत दहेज, उपहार और स्त्रीधन को निम्न प्रकार से परिभाषित किया गया हैः
दहेज: प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर दी गयी कोई संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति सुरक्षा या उसे देने की सहमति”:--
↪विवाह के एक पक्ष के द्वारा विवाह के दूसरे पक्ष को या
↪विवाह के किसी पक्ष के अभिभावकों द्वारा या |
↪विवाह के किसी पक्ष के किसी व्यक्ति के द्वारा किसी अन्य व्यक्ति को या
↪शादी के वक्त, या उससे पहले या उसके बाद कभी भी जो कि उपरोक्त पक्षों से सम्बंधित हो जिसमें मेहर की रकम सम्मिलित नहीं की जाती, अगर व्यक्ति पर मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरियत) लागू होता हो।
इस प्रकार दहेज से सम्बंधित तीन स्थितियां हैं-
↪विवाह से पूर्व या
↪विवाह के अवसर पर या
↪विवाह के बाद या
दहेज लेने और देने या दहेज लेने और देने के लिए उकसाने पर या तो 6 महीने का अधिकतम कारावास है या 5000 रूपये तक का जुर्माना अदा करना पड़ता है। वधु के माता-पिता या अभिभावकों से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से दहेज की मांग करने पर भी यही सजा दी जाती है। बाद में संशोधन अधिनियम के द्वारा इन सजाओं को भी बढाकर न्यूनतम 6 महीने और अधिकतम दस साल की कैद की सजा तय कर दी गयी है। वहीँ जुर्मने की रकम को बढ़ाकर 40,000 रूपये, ली गयी, दी गयी या मांगी गयी दहेज की रकम, दोनों में से जो भी अधिक हो, के बराबर कर दिया गया है। हालाँकि अदालत ने न्यूनतम सजा को कम करने का फैसला किया है लेकिन ऐसा करने के लिए अदालत को जरूरी और विशेष कारणों की आवश्यकता होती है (दहेज निषेध अधिनियम, 1961। की धारा 3 और 4) दंडनीय है- दहेज देना, दहेज लेना, दहेज लेने और देने के लिए उकसाना एवं वधु के माता-पिता या अभिभावकों से सीधे या परोक्ष तौर पर दहेज की मांग करना।
भारतीय दंड संहिता की धारा 498 ए निर्ममता तथा दहेज के लिए उत्पीड़न, 304 बी इससे होने वाली मृत्यु और 306 भादसं- उत्पीड़न से तंग आकर महिलाओं द्वारा आत्महत्या के लिए प्रेरित करने वाली घटनाओं से निपटने के लिए कानूनी प्रावधान है |
यदि किसी लड़की की विवाह के सात साल के भीतर असामान्य परिस्थितियों में मौत होती है और यह साबित कर दिया जाता है कि मौत से पहले उसे दहेज के लिए प्रताड़ित किया जाता था, तो भारतीय दंड संहिता की धारा 304-बी के अंतर्गत लड़की के पति और रिश्तेदारों को कम से कम सात वर्ष से लेकर आजीवन कारावास की सजा हो सकती है।
इस अधिनियम के अंतर्गत दहेज, उपहार और स्त्रीधन को निम्न प्रकार से परिभाषित किया गया हैः
दहेज: प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर दी गयी कोई संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति सुरक्षा या उसे देने की सहमति”:--
↪विवाह के एक पक्ष के द्वारा विवाह के दूसरे पक्ष को या
↪विवाह के किसी पक्ष के अभिभावकों द्वारा या |
↪विवाह के किसी पक्ष के किसी व्यक्ति के द्वारा किसी अन्य व्यक्ति को या
↪शादी के वक्त, या उससे पहले या उसके बाद कभी भी जो कि उपरोक्त पक्षों से सम्बंधित हो जिसमें मेहर की रकम सम्मिलित नहीं की जाती, अगर व्यक्ति पर मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरियत) लागू होता हो।
इस प्रकार दहेज से सम्बंधित तीन स्थितियां हैं-
↪विवाह से पूर्व या
↪विवाह के अवसर पर या
↪विवाह के बाद या
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