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महिला एवं बाल अपराध राजस्थान पुलिस PDF and notes
Lesson-3
यदि आप ने lesson-1 or 2 नहीं पढ़ा है तो पहले उन्हें पढ़ ले जिनके link last में दिये गये हैं।
📖स्त्रीधन :-
शादी के वक्त जो उपहार और जेवर को लड़की को दिए जाते हैं, वे स्त्रीधन कहलाते हैं। इसके अलावा लड़के और लड़की दोनों के कॉमन उपयोग के सामान जैसे फर्नीचर, टीवी, आदि स्त्रीधन में आते हैं ।
📖उपहार:-
लड़की शादी में जो सामन अपने साथ लेकर आती है या उसके पति को या उसके पति के रिश्तेदारों को दिया जाता है वह उपहार के दायरे में आता है|
↪धारा 2- दहेज का मतलब है कोई सम्पति या बहुमूल्य प्रतिभूति देना या देने के लिए प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से |
↪धारा 3-दहेज लेने या देने का अपराध
↪धारा 4-दहेज की मांग के लिए जुर्माना
↪धारा 4ए- किसी भी व्यक्ति द्वारा प्रकाशन या मिडिया के माध्यम से पुत्र-पुत्री के शादी के एवज में व्यवसाय या सम्पत्ति या हिस्से का कोई प्रस्ताव |
↪धारा 6- कोई दहेज विवाहिता के अतिरिक्त अन्य किसी व्यक्ति द्वारा धारण किया जाना |
↪धारा 8ए- घटना से एक वर्ष के अन्दर शिकायत
↪धारा 8बी- दहेज निषेध पदाधिकारी की नियुक्ति
2009 में राष्ट्रीय महिला आयोग ने इस अधिनियम में कुछ परिवर्तन प्रस्तावित किये थे | जिसके अनुसार, घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 के लिए नियुक्त किये गए सुरक्षा अधिकारियों को दहेज सुरक्षा अधिकारियों के दायित्व भी निभाने के लिए अधिकृत किया जाए।
महिला जहाँ कहीं भी स्थायी या अस्थायी तौर पर रह रही है वहीं से दहेज की शिकायत दर्ज करने की अनुमति दी जाए।
इस अधिनियम में किसी स्त्री के अशिष्ट चित्रण को इस प्रकार परिभाषित किया गया है कि किसी स्त्री का ऐसा चित्रण:
↪जिससे उसकी लज्जा भंग हो सकती हो या
↪जन साधारण के नैतिक चरित्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता हो या
↪किसी महिला की आकृति, उसके रूप या शरीर अथवा उसके किसी भाग का इस प्रकार वर्णन या चित्रण करना जिससे उसका चरित्र कलंकित हो तथा जिससे दुराचार, भ्रष्टाचार या लोक अप्रदुषण अथवा नैतिकता की हानि होने की सम्भावना हो। अश्लील चित्रण की परिधि में आयेगा ।
↪ऐसा करना महिलाओं का स्त्री अशिष्ट रूपण (प्रतिषेध) अधिनियम, 1986 के अधीन दण्डनीय अपराध है। जिसके लिए अधिनियम के अंतर्गत निम्नलिखित दंडात्मक प्रावधान हैं :
↪प्रथम बार अपराध करने पर 02 वर्ष तक की अवधि का कारावास तथा रू. 02 हजार का जुर्माना
↪ऐसे अपराध की पुनरावृत्ति करने पर न्यूनतम 06 माह से 05 वर्ष तक का कारावास तथा न्यूनतम रू. १0000- से रू. 0। लाख तक का जुर्माना |
↪इसके खिलाफ किसी भी व्यक्ति द्वारा निम्नलिखित जगहों पर शिकायत करवाई जा सकती है:
↪नजदीकी पुलिस स्टेशन हु जिला न्यायालय
↪उपनिदेशक, महिला एवं बाल विकास से कर सकती है
↪तहसील जिला राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण से निःशुल्क परामर्शध्विधिक सहायता प्राप्त कर सकते हैं।
उपरोक्त में किसी से भी स्वयं माता-पिता या अन्य रिश्तेदार या सरकार द्वारा मान्य कोई समाज सेवी संस्था के माध्यम से शिकायत दर्ज करायी जा सकती है या फिर टोल फ्री नं. पर कॉल कर सकते हैं ।
➡️अधिनियम से जुडी प्रमुख धाराएं :-
↪धारा 2- दहेज का मतलब है कोई सम्पति या बहुमूल्य प्रतिभूति देना या देने के लिए प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से |
↪धारा 3-दहेज लेने या देने का अपराध
↪धारा 4-दहेज की मांग के लिए जुर्माना
↪धारा 4ए- किसी भी व्यक्ति द्वारा प्रकाशन या मिडिया के माध्यम से पुत्र-पुत्री के शादी के एवज में व्यवसाय या सम्पत्ति या हिस्से का कोई प्रस्ताव |
↪धारा 6- कोई दहेज विवाहिता के अतिरिक्त अन्य किसी व्यक्ति द्वारा धारण किया जाना |
↪धारा 8ए- घटना से एक वर्ष के अन्दर शिकायत
↪धारा 8बी- दहेज निषेध पदाधिकारी की नियुक्ति
2009 में राष्ट्रीय महिला आयोग ने इस अधिनियम में कुछ परिवर्तन प्रस्तावित किये थे | जिसके अनुसार, घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 के लिए नियुक्त किये गए सुरक्षा अधिकारियों को दहेज सुरक्षा अधिकारियों के दायित्व भी निभाने के लिए अधिकृत किया जाए।
महिला जहाँ कहीं भी स्थायी या अस्थायी तौर पर रह रही है वहीं से दहेज की शिकायत दर्ज करने की अनुमति दी जाए।
📖स्त्री अशिष्ट रूप प्रतिषेध अधिनियम 1986:-
भारत की संसद का एक अधिनियम है, जिसे विज्ञापन, प्रकाशन, लेखन चित्रों; आंकड़ों या किसी अन्य तरीके से महिलाओं के अश्लील प्रतिनिधत्व पर रोक लगाने के लिए लागू किया गया है।इस अधिनियम में किसी स्त्री के अशिष्ट चित्रण को इस प्रकार परिभाषित किया गया है कि किसी स्त्री का ऐसा चित्रण:
↪जिससे उसकी लज्जा भंग हो सकती हो या
↪जन साधारण के नैतिक चरित्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता हो या
↪किसी महिला की आकृति, उसके रूप या शरीर अथवा उसके किसी भाग का इस प्रकार वर्णन या चित्रण करना जिससे उसका चरित्र कलंकित हो तथा जिससे दुराचार, भ्रष्टाचार या लोक अप्रदुषण अथवा नैतिकता की हानि होने की सम्भावना हो। अश्लील चित्रण की परिधि में आयेगा ।
↪ऐसा करना महिलाओं का स्त्री अशिष्ट रूपण (प्रतिषेध) अधिनियम, 1986 के अधीन दण्डनीय अपराध है। जिसके लिए अधिनियम के अंतर्गत निम्नलिखित दंडात्मक प्रावधान हैं :
↪प्रथम बार अपराध करने पर 02 वर्ष तक की अवधि का कारावास तथा रू. 02 हजार का जुर्माना
↪ऐसे अपराध की पुनरावृत्ति करने पर न्यूनतम 06 माह से 05 वर्ष तक का कारावास तथा न्यूनतम रू. १0000- से रू. 0। लाख तक का जुर्माना |
↪इसके खिलाफ किसी भी व्यक्ति द्वारा निम्नलिखित जगहों पर शिकायत करवाई जा सकती है:
↪नजदीकी पुलिस स्टेशन हु जिला न्यायालय
↪उपनिदेशक, महिला एवं बाल विकास से कर सकती है
↪तहसील जिला राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण से निःशुल्क परामर्शध्विधिक सहायता प्राप्त कर सकते हैं।
उपरोक्त में किसी से भी स्वयं माता-पिता या अन्य रिश्तेदार या सरकार द्वारा मान्य कोई समाज सेवी संस्था के माध्यम से शिकायत दर्ज करायी जा सकती है या फिर टोल फ्री नं. पर कॉल कर सकते हैं ।
📖सती (रोकथाम) अधिनियम 1987:-
यह सती प्रथा को रोकने एवं स्त्रियों की सुरक्षा के लिए 1987 में राजस्थान सरकार द्वारा लागू एक कानून है। यह 1988 में द कमीशन ऑफ सती (रोकथाम) अधिनियम, 1987 के अधिनियमन के साथ भारत की संसद का एक अधिनियम बन गया। अधिनियम सती को रोकने का प्रयास करता है। विधवाओं के जीवित रहने या स्वैच्छिक या मजबूरन जलने या दफनाने, और किसी भी समारोह के पालन के माध्यम से इस क्रिया के महिमामंडन पर रोक लगाने के लिए, किसी भी जुलूस में भागीदारी, एक वित्तीय ट्रस्ट का निर्माण, एक मंदिर का निर्माण, या किसी भी कार्रवाई के लिए एक विधवा की स्मृति को स्मरण करना या उसे सम्मानित करना जिसने सती किया। सती को पहली बार बंगाल सती विनियमन, 1829 के तहत प्रतिबंधित किया गया था।
📖घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005:-
भारत की संसद द्वारा पारित अधिनियम है, जिसका उद्देश्य घरेलु हिंसा से महिलाओं को बचाना है। यह 26 अक्टूबर 2006 को लागू हुआ |
किसी भी महिला के साथ किये गए, किसी भी प्रकार का शारीरिक, मानसिक या लैंगिक दुर्व्यवहार या किसी भी प्रकार का शोषण जिससे महिला की गरिमा का उल्लंघन, अपमान या तिरस्कार हो, या वित्तीय साधन जिसकी वो हकदार है, से वंचित करना ये सभी कृत्य घरेलु हिंसा की श्रेणी में आते हैं |
इस कानून के तहत किसी भी घरेलु सम्बन्ध या रिश्तेदारी में किसी प्रकार का व्यवहार, आचरण या बर्ताव जिससे, किसी भी स्त्री के स्वास्थ्य, सुरक्षा, जीवन, या किसी शारीरिक अंग को नुक्सान पहुँचता है एवं मानसिक या शारीरिक हानि होती है तो ये घरेलु हिंसा की श्रेणी में आते हैं जो कि एक अपराध है। ऐसी हिंसा होने की स्थिति में पीड़ित या ऐसा कोई भी व्यक्ति जिसे किसी कारण से लगता है कि घरेलु हिंसा की कोई घटना घटित हुई है, या घटने वाली है तो वह संरक्षण अधिकारी या सेवा प्रदाता को सूचित कर सकती है।
इस अधिनियम के अनुसार, जब किसी पुलिस अधिकारी, संरक्षण अधिकारी, सेवा प्रदाता या मजिस्ट्रेट को घरेलु हिंसा की घटना के बारे में पता चलता है, तो उन्हें पीड़ित को निम्नलिखित अधिकारों के बारे में सूचित करना होता है :
↪पीड़ित इस कानून के तहत किसी भी राहत के लिए आवेदन कर सकती है जैसे कि दृसंरक्षण, आदेश, आर्थिक राहत, बच्चों के अस्थायी संरक्षण का आदेश, निवास आदेश या मुआवजे का आदेश
↪पीड़ित आधिकारिक सेवा प्रदाताओं की सहायता ले सकती है
↪पीड़ित संरक्षण अधिकारी से संपर्क कर सकती है
↪पीड़ित निशुल्क कानूनी सहायता की मांग कर सकती है
↪पीड़ित भारतीय दंड संहिता के तहत क्रिमिनल याचिका भी दाखिल कर सकती है हु इस कानून के तहत दिए गए संरक्षण आदेशों का उल्लंघन होने पर प्रतिवादी को १ साल तक की जेल भी हो सकती है, या 20,000 /- तक का जुर्माना या दोनों
↪इस कानून में याचिका करने के लिए एक प्रारूप सुझाया गया, जिसका नाम है घरेलु घटना रिपोर्ट है, जिसको भरकर संरक्षण अधिकारी, सेवा प्रदाता, पुलिस के पास जमा कराया जा सकता है |
वाली या तदर्थ क्षमता में काम करने वाली महिलाओं को यह कानून सुरक्षा प्रदान करता है | इसके अतिरिक्त, कॉलेजों / विश्वविद्यालयों में विद्यार्थियों, शोध छात्रों और अस्पतालों में रोगियों को भी कवर किया गया है। जांच की अवधि के दौरान महिला छुट्टी ले सकती है या स्थांनान्तरण करवा सकती है। यह कानून, कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न को अवैध करार देता है। इस कानून में यौन उत्पीड़न के विभिन्न प्रकारों को चिन्हित किया गया है और बताया गया है कि कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की स्थिति में शिकायत किस प्रकार की जा सकती है । इस कानून के अंतर्गत किसी भी महिला के साथ, किसी भी कार्यस्थल पर (चाहे वह वहाँ काम करती हो या नहीं), किसी भी प्रकार का यौन उत्पीड़न हुआ हो तो उसे इसके खिलाफ शिकायत दर्ज कराने का अधिकार प्राप्त है।
किसी भी महिला के साथ किये गए, किसी भी प्रकार का शारीरिक, मानसिक या लैंगिक दुर्व्यवहार या किसी भी प्रकार का शोषण जिससे महिला की गरिमा का उल्लंघन, अपमान या तिरस्कार हो, या वित्तीय साधन जिसकी वो हकदार है, से वंचित करना ये सभी कृत्य घरेलु हिंसा की श्रेणी में आते हैं |
इस कानून के तहत किसी भी घरेलु सम्बन्ध या रिश्तेदारी में किसी प्रकार का व्यवहार, आचरण या बर्ताव जिससे, किसी भी स्त्री के स्वास्थ्य, सुरक्षा, जीवन, या किसी शारीरिक अंग को नुक्सान पहुँचता है एवं मानसिक या शारीरिक हानि होती है तो ये घरेलु हिंसा की श्रेणी में आते हैं जो कि एक अपराध है। ऐसी हिंसा होने की स्थिति में पीड़ित या ऐसा कोई भी व्यक्ति जिसे किसी कारण से लगता है कि घरेलु हिंसा की कोई घटना घटित हुई है, या घटने वाली है तो वह संरक्षण अधिकारी या सेवा प्रदाता को सूचित कर सकती है।
इस अधिनियम के अनुसार, जब किसी पुलिस अधिकारी, संरक्षण अधिकारी, सेवा प्रदाता या मजिस्ट्रेट को घरेलु हिंसा की घटना के बारे में पता चलता है, तो उन्हें पीड़ित को निम्नलिखित अधिकारों के बारे में सूचित करना होता है :
↪पीड़ित इस कानून के तहत किसी भी राहत के लिए आवेदन कर सकती है जैसे कि दृसंरक्षण, आदेश, आर्थिक राहत, बच्चों के अस्थायी संरक्षण का आदेश, निवास आदेश या मुआवजे का आदेश
↪पीड़ित आधिकारिक सेवा प्रदाताओं की सहायता ले सकती है
↪पीड़ित संरक्षण अधिकारी से संपर्क कर सकती है
↪पीड़ित निशुल्क कानूनी सहायता की मांग कर सकती है
↪पीड़ित भारतीय दंड संहिता के तहत क्रिमिनल याचिका भी दाखिल कर सकती है हु इस कानून के तहत दिए गए संरक्षण आदेशों का उल्लंघन होने पर प्रतिवादी को १ साल तक की जेल भी हो सकती है, या 20,000 /- तक का जुर्माना या दोनों
↪इस कानून में याचिका करने के लिए एक प्रारूप सुझाया गया, जिसका नाम है घरेलु घटना रिपोर्ट है, जिसको भरकर संरक्षण अधिकारी, सेवा प्रदाता, पुलिस के पास जमा कराया जा सकता है |
📖महिलाओं का कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न (निवारण, प्रतिषेध एवं. प्रतितोष) अधिनियम, 2013 :-
वर्ष 2013 में पारित इस अधिनियम के अनुसार, किसी भी ऐसी संस्था जिसमें 40 या 40 से अधिक लोग काम करते हैं, वहाँ आन्तरिक परिवाद समिति का गठन किया गया है। ऐसी संस्थाओं में महिला के साथ हुए किसी भी प्रकार के यौन उत्पीड़न को एक अपराध माना गया है। ये अधिनियम विशाखा केस में दिए गए लगभग सभी निर्देशों को धारण एवं प्रावधानों को निहित करता है। जैसे शिकायत समितियों को सबूत जुटाने में सिविल कोर्ट वाली शक्तियां प्रदान की हैं, यदि नियोक्ता अधिनियम के प्रावधानों को पूरा करने में असफल होता है तो उसे 50,000 रूपये तक का अर्थदंड भरना पड़ेगा। ये अधिनियम किसी भी महिला कर्मचारी, ग्राहक, उपभोक्ता, प्रशिक्षु और दैनिक मजदूरी पर कार्यस्थल में प्रवेश करनेवाली या तदर्थ क्षमता में काम करने वाली महिलाओं को यह कानून सुरक्षा प्रदान करता है | इसके अतिरिक्त, कॉलेजों / विश्वविद्यालयों में विद्यार्थियों, शोध छात्रों और अस्पतालों में रोगियों को भी कवर किया गया है। जांच की अवधि के दौरान महिला छुट्टी ले सकती है या स्थांनान्तरण करवा सकती है। यह कानून, कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न को अवैध करार देता है। इस कानून में यौन उत्पीड़न के विभिन्न प्रकारों को चिन्हित किया गया है और बताया गया है कि कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की स्थिति में शिकायत किस प्रकार की जा सकती है । इस कानून के अंतर्गत किसी भी महिला के साथ, किसी भी कार्यस्थल पर (चाहे वह वहाँ काम करती हो या नहीं), किसी भी प्रकार का यौन उत्पीड़न हुआ हो तो उसे इसके खिलाफ शिकायत दर्ज कराने का अधिकार प्राप्त है।
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