महिलाओं एवं बच्चों के प्रति अपराध एवं उनसे सम्बंधित कानूनी प्रावधानों की जानकारी व पुलिस की भूमिका/Rajasthan police notes
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महिलाओं एवं बच्चों के प्रति अपराध एवं उनसे सम्बंधित कानूनी प्रावधानों की जानकारी व पुलिस की भूमिका
Rajasthan police constable की परीक्षा में भाग- स से 10 प्रश्न आयेंगे, जिनके कुल अंक 5 होगे।
तो हम इसे 10 lesson में पुरा करेंगे,जहाँ आज हम lesson-1 करेंगे।
Lesson-1
📕उद्देश्य:-
राजस्थान पुलिस सेवा के अभ्यार्थियों के लिए, एक प्रारम्भिक पाठ्य-सामग्री तैयार की गयी है। इसका उद्देश्य पुलिस बल की सभी इकाइयों में जुड़ने वाले कर्मियों में महिला एवं बाल अपराधों से सम्बंधित कानून एवं इनके अमलीकरण में पुलिस / प्रशासन की भूमिका के बारे में अवगत कराना है।
📕पृष्ठभूमि:-
“स्वयं, किसी व्यक्ति, समूह या समुदाय के विरुद्ध उन्हें किसी प्रकार के मानसिक या शारीरिक चोट पहुंचाने के लिए जान-बूझकर किये गए शक्ति के प्रयोग” को हिंसा कहते हैं। “जान बूझ कर किया गया कोई भी ऐसा काम जो समाज विरोधी हो या किसी भी प्रकार से समाज द्वारा निर्धारित आचरण का उल्लंघन अथवा जिसके लिए दोषी व्यक्ति को भारतीय दंड संहिता (आई. पी.सी) के अंतर्गत कानून द्वारा निर्धारित दंड दिया जाता हो” ऐसे काम अपराध कहलाते हैं ।
उपयुर्कत परिभाषा के आधार पर यह कहा जा सकता है कि हिंसा और अपराध दोनों एक दूसरे से सीधा संबंध है। ऐसी कोई भी क्रिया-कलाप जिससे किसी व्यक्ति विशेष या समूह, समुदाय की भावनाएं और स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े और व्यवस्थाओं में आवांछित प्रभाव पड़े, वे सभी हिंसा और अपराध के श्रेणी में रखे जायेंगे ।
बदलते मौजूदा परिवेश में बच्चों एवं महिलाओं के प्रति अपराध एक आम समस्या बनती जा रही है। कोई भी आंकड़ा उठा कर देख लें, सभी इनके प्रति बढ़ते अपराधों की प्रवृत्ति को ही दर्शाते हैं। आज बच्चों एवं महिलाओं के प्रति अपराध के रोकथाम के लिए आवश्यक है कि समाज का हर एक वर्ग जागरूक हो और उसके उन्मूलन के लिए समुचित प्रयास करे। ये समाज से अपेक्षित है कि हम बच्चों एवं महिलाओं के प्रति हो रहे अपराधों को चिन्हित करें एवं उसके उन्मूलन में सहायक भूमिका अदा करें। जहां तक सरकारी व्यवस्था एवं तंत्र का प्रश्न है, उनके द्वारा अनेक तरह के कानूनी व्यवस्थाओं का प्रावधान किया गया है। इन कानूनों के प्रति जागरूकता एवं इनके प्रभावी क्रियान्वयन में कमी होने की वजह से समाज में ये समस्या और भी विकराल रूप धारण कर रही है। आवश्यकता इस बात की है कि इन कानूनों को आम-जन तक पहुंचाया जाए, ताकि लोग इसका लाभ उठा सकें और बच्चों एवं महिलाओं के प्रति दिन-ब-दिन बढ़ते अपराध को रोक सकें।
अपराध जंगल में लगने वाले आग की तरह है, जिसे समय पर न रोका जाए तो, आने वाले समय में यह विध्वंसकारी रूप धारण कर लेती है और यह समूचे मानव जाति के ऊपर एक प्रश्नचिन्ह खड़ा कर सकती है ।इसलिए अपेक्षित है कि हम सही समय पर इसके निराकरण की व्यवस्था कायम करें | विषय की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए, न ही सिर्फ इसके रोकथाम के लिए विशेष नियम, प्रावधान व कानून, बनाए गए, अपितु: समय समय पर इनमें व्यवहारात्मक संशोधन भी किये गए हैं । परिणामस्वरूप समाज के इस कमजोर तबके को बाल एवं महिला सुलभ उचित और सुरक्षित वातावरण मिल सके।
📕महिला सम्बंधित अपराध:-
महिलाओं से सम्बंधित अपराधों की श्रेणी में उनके शारीरिक, मानसिक, आर्थिक, यौन एवं भावनात्मक उत्पीड़न / शोषण से सम्बंधित अपराध प्रायः भारतीय समाज में देखे जाते हैं | महिलाओं पर होने वाले अपराध चौंकाने वाले हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, प्रति वर्ष महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों के लगभग 3 लाख से ज्यादा मामले दर्ज होते हैं, जिनमें छेड़छाड़, मार-पीट, अपहरण, दहेज उत्पीड़न से लेकर बलात्कार एवं मृत्यु तक के मामले शामिल हैं। अक्सर कहा जाता है कि महिलाएं अपनों के बीच सबसे ज्यादा सुरक्षित रहती हैं पर हकीकत ये है की महिलाएं सबसे ज्यादा असुरक्षित, अपनों के बीच ही होती हैं आंकड़ों के अनुसार महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों में ज्यादातर उनके जानकार ही शामिल होते है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो 2045 के अनुसार, 34 हजार से ज्यादा महिलाएं दुष्कर्म की शिकार हुई | वहीँ दहेज को लेकर भी महिलाओं के ऊपर होने वाले अपराध के आंकड़े कुछ कम नहीं हैं। भारत में औसतन हर एक घंटे में एक महिला दहेज के कारणों से मौत की शिकार होती है। इसी आंकड़े के अनुसार भारत में लगभग 70 प्रतिशत विवाहित महिलाएं घरेलु हिंसा की शिकार होती हैं। घर के बाहर जाकर काम करने वाली महिलाओं के साथ ऑफिस में होने वाले छेड़छाड़ के मामले भी काफी बढ़े हैं। इसी प्रकार, 2075 में 60 हजार से ज्यादा महिलाएं अपहरण का शिकार हुईं, जिनमें में ज्यादातर महिलाओं का अपहरण जबरदस्ती शादी एवं अनैतिक देह व्यापर के लिए किया गया।
उपुर्युक्त महिला सम्बंधित अपराधों को रोकने, उनसे निपटने तथा उन अपराधों से महिलाओं के संरक्षण के लिए बनाए गए कानून निम्नलिखित हैं:
सर्वप्रथम वर्ष 1950 में, भारतीय संविधान में बच्चों एवं महिलाओं की सुरक्षा को ध्यान दिया गया। भारतीय संविधान राज्य को यह अधिकार देता है, कि वह स्त्रियों और बालकों के कल्याण के लिए विशेष उपाय कर सकता है।
भारतीय दंड संहिता 1860- भारतीय दंड संहिता (आई.पी.सी)।860 एक व्यापक कानून है जो भारत में आपराधिक कानून के वास्तविक पहलुओं को शामिल करता है। यह भारत के किसी भी नागरिक द्वारा किये गए अपराधों के बारे में बताता है एवं उनमें से प्रत्येक के लिए सजा और जुर्माना बताता है। भारतीय दंड संहिता पूरे भारत में लागू है।
इस संहिता में महिलाओं को विशेषाधिकार प्राप्त हैं । भारतीय दंड संहिता की धारा 354- स्त्री की लज्जा भंग करने के आशय से उस पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग, धारा 354-ए- यौन उत्पीड़न के लिए सजा, धारा 354-बी- बल पूर्वक या हमले द्वारा किसी स्त्री को नग्न करना या नग्न होने के लिए विवश करना, धारा 354 सी- तांक-झांक करना, धारा 354-डी पीछा करना एवं धारा 509- शब्द, अंगविक्षेप या कार्य जो किसी स्त्री की लज्जा का अनादर करने के लिए आशयित है। इन सभी धाराओं में महिला के होने वाले अपराधों के लिए कठोर कारावास की सजा या जुर्माना या दोनों लगायें जा सकते हैं । इसका उद्देश्य महिलाओं की सुरक्षा एवं गरिमा को सुरक्षित करना है।
📕भारतीय दण्ड संहिता संशोधित अधिनियम 2018:-
देश में महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराधों (खास कर यौन उत्पीड़न) के लिए सख्त सजा सुनिश्चित करने के लिए देश भर में ये कानून लागू किया गया है। नए कानून में बलात्कार की परिभाषा को व्यापक बनाते हुए इसके लिए सख्त सजा का प्रावधान किया गया है। बलात्कार के मामले में पीड़ित की मौत हो जाने या उसके स्थायी रूप से मृतप्राय हो जाने की स्थिति में मौत की सजा का प्रावधान भी इस कानून में किया गया है। सामूहिक बलात्कार की स्थिति में दोषियों के लिए धारा 376 डी के तहत सजा की अवधि न्यूनतम 20 वर्ष रखी गयी है, जो आजीवन कारावास तक हो सकती है ? कानून में सहमति से यौन सम्बन्ध बनाने की उम्र 18 साल तय की गयी है। महिलाओं का पीछा करने एवं तांक-झौँक पर कड़े दंड का प्रावधान है। ऐसे मामले में पहली बार में गलती हो सकती है, इसलिए इसे जमानती रखा गया है, लेकिन दूसरी बार ऐसा करने पर इसे गैर जमानती बनाया गया है | तेजाबी हमला करने वालों के लिए 10 वर्ष की सजा का भी कानून में प्रावधान किया गया है। इसमें पीड़ित को आत्मरक्षा का अधिकार प्रदान करते हुए, तेजाब हमले की अपराध के रूप में व्याख्या की गयी है | साथ ही यह प्रावधान किया गया है कि सभी अस्पताल बलात्कार या तेजाब हमला पीड़ितों को तुरंत प्राथमिक सहायता या निशुल्क उपचार उपलब्ध करायेंगे और ऐसा करने में विफल रहने पर उन्हें सजा का सामना करना पड़ेगा। कानून में कम से कम 7 साल की सजा का प्रावधान है, जो प्राकृतिक जीवन-काल तक के लिए बढ़ाई जा सकती है और यदि दोषी व्यक्ति पुलिस अधिकारी, लोकसेवक, शस्त्र बलों या प्रबंधन या अस्पताल का कर्मचारी है तो उसे जुर्माने का भी सामना करना पड़ेगा। कानून में भारतीय साक्ष्य अधिनियम में संशोधन किया गया है जिसके तहत बलात्कार पीड़िता को, यदि वह अस्थायी या स्थायी रूप से मानसिक या शारीरिक रूप से अक्षम हो जाती है तो उसे अपना बयान दुभाषियों या विशेष एजुकेटर की मदद से न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष दर्ज कराने की अनुमति दी गयी है। ये अधिनियम संशोधित भारतीय दंड संहिता का एक अंग हैं ।
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